Team Edubeats
| Updated:Nov 27, 2020महाराष्ट्र/लखनऊ
संस्कृत भारतीय भाषाओं की एक संजीवनी है। संस्कृत के बिना कोई भारतीय भाषा जीवित नहीं रह सकती, चाहे वह तमिल हो, चाहे वह हिन्दी और संस्कृत भारतीय संस्कृति का एक अविभाज्य अंग है जिसके बिना संस्कृत की आत्मा नहीं बन सकती। जिस प्रकार आत्मा शरीर के बिना अपने आपको अभिव्यक्त नहीं कर सकती ठीक उसी प्रकार संस्कृत के बिना भारत का विशाल ज्ञान भंडार अपने आपको अविस्कृत नहीं कर सकता। यह बात कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने कही।
प्रो. श्रीनिवास कहते हैं कि मैं किसी भी सभ्यता संस्कृति को अनादर से नहीं देखना चाहिए। वह कहते हैं कि पाश्चात्य सभ्यता, पाश्चात्य जीवनशैली अपने में अच्छी हो सकती है लेकिन वही सर्वश्रेष्ठ है, उससे ही जीवन का सारा सुख मिलेगा, इस बहुत बड़ी भ्रांति में हम सभी लगे हुए हैं। भारत में हमारे प्राचीन परंपरागत ज्ञान के विशाल भंडार हैं, प्राचीन परंपरागत संस्कृति है, जीवन शैली है, सभ्यता है लेकिन उसके बारे में हमें खुद पता नहीं। जिससे हम उससे वंचित हो गए। प्रो. श्रीनिवास बच्चों के संस्कारों पर कहते हैं कि आज भारत में पाश्चात्य जीवन शैली अपनाने से संस्कार खो गया है, यह नहीं माना जा सकता। पाश्चात्य जीवन शैली से पाश्चात्य राष्ट्र भी बहुत अच्छे संस्कारवान राष्ट्र हैं, इसके लिए उनके ऊपर सीधा ऊंगली उठाना अच्छी बात नहीं।
प्रो. वरखेड़ी ने कहा कि एजुकेशन की सिचुएशन को 'बीट' करने की जरूरत है,जिससे सुरक्षा का भाव मिलेगा और ये काम एजुकेशन बीट्स बहुत सुंदर तरीके से कर रहा है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के कारण जो परिवर्तन आने वाले हैं, उसके लिए एक बहुत बड़ी तैयारी हमें करनी है एक शिक्षक और छात्रों को मिलकर। उन्होंने यह भी कहा कि हमें सरकार पर निर्भर नहीं रहना है, सरकार तो अपना काम करेगी। लेकिन आज परिस्थिति बदली है, चाहे वह स्वच्छ भारत अभियान हो, चाहे वह स्वस्थ भारत हो। यह सारे कार्यक्रम केवल सरकार के कारण सक्सेजफुल नहीं रहे, प्राइवेट सहभागिता के कारण रहे।एजुकेशन बीट्स डॉट कॉम की रेजिडेंट एडिटर दिव्या गौरव त्रिपाठी ने प्रो. वरखेड़ी से कई महत्वपूर्ण विषयों पर बातचीत की। देखें पूरा इंटरव्यू...