Team Edubeats
| Updated:Jan 05, 2021सम्भल/लखनऊ
सरकारी स्कूल का नाम सुनकर सभी के जहन में एक ही ख्याल आता है, वो है- प्लास्टर टूटी बिल्डिंग, टाट-फट्टी पर बैठे बच्चे, शौचालयों में लगा ताला, टूटी पड़ी बाउंड्री और इन सबको देखकर कोई भी व्यक्ति अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ने नहीं भेजता। लेकिन उत्तर प्रदेश के ऐसे बहुत से शिक्षक हैं, जो इन बदहाल स्कूलों की हालत को सुधारने में जुटे पड़े हैं। उन्हीं शिक्षकों में से सम्भल जिले के इटायला माफी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने वाले कपिल मलिक ने एजुकेशन बीट्स से खास बातचीत में बताया कि किस प्रकार उन्होंने गांव वालों का विरोध सहकर भी अपने स्कूल को शानदार बनाया।
प्रधानाध्यापक कपिल बताते हैं कि वर्ष 2012-13 में जब मैंने इन्चार्ज अध्यापक के पद पर कार्यभार ग्रहण किया, उस समय उनके स्कूल की स्थिति अत्यधिक खराब थी। स्कूल की कक्षाओं की हालत जर्जर थी। स्कूल में ब्लैक बोर्ड, चाक, पट्टी भी नहीं थे। इसी के साथ स्कूल में 15 से 20 छात्र-छात्राएं ही पढ़ने आते थे। उन्होंने कहा कि एक ऐसा भी समय था जब उनके स्कूल में बाउन्ड्री तक नहीं थी, जिसकी वजह से स्कूल में बहुत ज्यादा गन्दगी और जानवरों का खतरा बना रहता था। कपिल बताते हैं कि जब उन्होंने स्कूल की बाउन्ड्री बनवानी शुरू की तो गांव के सभी लोगों ने इसका खुलकर विरोध किया। लेकिन शानदार स्कूल के सपने को मन में ठान चुके कपिल के ऊपर गांव वालों के विरोध का रत्ती भर असर न हुआ। इसी प्रकार कपिल बताते हैं कि धीरे-धीरे उन्होंने स्कूल को पूरी तरह से परिवर्तित करने के लिए अपने पास से 15 लाख रुपए भी खर्च कर दिए। आज उनके स्कूल में 373 बच्चों का नामाकंन है।
कपिल बताते हैं कि स्कूल के इस परिवर्तन से अब सभी गांव वाले खुश हैं। इसी के साथ वह कहते हैं कि अब तो उस गांव में जब भी किसी के घर कोई मेहमान आता है तो चाय, नाश्ता कराने के बाद सबसे पहले गांव वाले उस मेहमान को अपने गांव का स्कूल दिखाने लाते हैं, जो मेरे लिए गर्व का विषय है। इसी के साथ एजुकेशन बीट्स से खास बातचीत में कपिल ने और भी कई खास बातें कीं... देखिए...