Deeksha Bajpai
| Updated:Jun 01, 2021
फरिश्ते का शाहकार लगती हो
मैग्जीन का मन चाहा इश्तहार लगती हो ।
अखबारी कूपन का पुरस्कार लगती हो।।
रखे हो किसी ने रोज़े बड़ी ही शिद्दत से।
सुबह अज़ान शाम में अफ्तार लगती हो।।
फंस गया हो जैसे दिल स्पीड ब्रेकर्स में।
कभी कम कभी ज्यादा रफ्तार लगती हो।।
पागल बनाया है तुमने सारे जहान को ही।
मगर तुम भी इश्क़ में गिरफ्तार लगती हो।।
कारीगरी मैकेनिक की हुनर उस्ताद का।
किसी वैज्ञानिक का अविष्कार लगती हो।।
तराशा हो मूर्तिकार ने नाज़ुक सी छेनी से।
या किसी फ़रिश्ते का शाहकार लगती हो।।
संदली बदन,जुल्फें घटा,कटार से दो नैन ।
जन्नत से आयी हो या अवतार लगती हो।।
करन त्रिपाठी