Nimisha Bajpai
| Updated:Dec 17, 2020वह तरु कदंब की छाया में,
कौन खड़ा मुस्काता।
क्यों विश्व मोहिनी माया से,
मेरा चित्त चुराता।।
कर बारंबार इशारा,
क्यों है निजी निकट बुलाता।
दे मौन निमंत्रण प्यारा,
है जी की जलन बुझाता।।
यह कौन डाह के मारे,
है कल कल शोर मचाती।
छितराकर रजत कणों को,
निज वैभव विपुल दिखाती।।
झीने नीले अंबर से,
मुख ढांककर है मुसकाती।
वे मुझे को चाह रहे हैं,
यह है उनको फुसलाती।।
यह देख कौन निज शोभा,
इठलाती इतराती है।
लख मेरी ओर न जाने,
किस कारण मुसुकाती है।।
वह गाता हुआ निराली,
रागिनी कौन है आया।
मुख चूम झूम कर इससे,
रस लेकर कहीं सीधाया।।
यह किसकी है परछाईं,
जो सुख से झूम रही है।
अनुराग भरी मोहन के,
चरणों को चूम रही है।।
मैं भी सब छोड़ इसी का,
अनुकरण 'प्रसाद' करूंगी।
प्यारे के पद्म पदों में,
वन भ्रामरी सी विचरूंगी।।
गया प्रसाद द्विवेदी
अमेठी