Team Edubeats
| Updated:Sep 26, 2020गहराईयों से ढूँढ़ जिसने, खुद को निकाला है,
पाई सीने में अब उसने, अपने एक ज्वाला है,
खिंच लकीरे जब जब तुमने, हदों में रहना,
बस नारी को सिखाया है,
तब तब अपनी ही कब्र में उसे, जिंदा आधा दफ़नाया है।
बिखरे ख्वाबों को उसके उलझा के,
जाने वो एक दिन कहाँ चला गया,
उस वक्त जो वो टूटी थी,
तुम्ही ने तो आके संभाला था।
हुआ प्रतीत सब बदल सा गया है,
दोस्त सच्चा उसे भी मिल गया है,
मौका खुदा ने एक उसे नवाजा है,
टूटे वो उससे ज्यादा,संभलना सिखाया है।
फिर एक दिन दिल का हाल अपना,
दोस्त बन जब उसने बताया था,
कर पाओगी भरोसा फिर से?
ये पूछ कई बार दिल ने तुमको आज़माया था।
समय ही तो थोड़ा तुमने मांगा था,
अपमान जब इसे,उसने अपना माना था,
तुम्हे क्या पता था अनजाने में,
मरदानगी को उसकी ललकारा था ।
सब्र कहा फिर सिखा था उसने,
जन्म जो पुरुष योनि का पाया था,
एक सुबह फिर पीछे से आकर,
चेहरा तुम्हारा रूह के साथ झुलसाया था।
न जाने उस बहरूपिये ने,
इन सबसे क्या पाया था,
जानती हूं इतना मगर,
आघात गहरा पहुचाया था।
पहचान के साथ तुम्हारी जब उसने,
शख्शियत पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया था।
श्वेता निम्बार्क
दुबई