Nimisha Bajpai
| Updated:Dec 17, 2020किसानों की कथित पीड़ा सुनाने आज आया हूँ,
बने जो जख्म हैं नासूर दिखाने उनको आया हूँ।
बड़ा बेदर्द है शासन सुनना कुछ भी नहीं चाहता,
केवल अपनी ही बातें सुनाना उसको है आता।
कहीं भाषण कहीं नारे कहीं पर रैलियाँ देखीं,
सूखी कृषकों के घर की नहीं हैं रोटियाँ देखीं।
किसानों की यहीं पीड़ा मेरे आँसू बहाती हैं,
बहुत देखा है आँखों ने, नहीं अब देख पातीं हैं।
कभी ओले, कभी बारिश, कभी तूफ़ान आता है,
बेमौसमी आपदाओं का यहीं सैलाब आता है।
किसानों का मुखर चेहरा बड़ा मायूस रहता है,
नेताओं का दिया भाषण जब भाषण ही रहता है।
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश