Nimisha Bajpai
| Updated:Dec 01, 2019तब तो तेरे सामने मैं न था,
बस तेरी आंखों का भ्रम था।
तेरे भीतर मैं रह रहा था,
तू बाहर तलाश रहा था।
मैं तो आवाज दे रहा था,
तू सुन ही नहीं रहा था।।
तब तो तेरे सामने मैं न था,
बस तेरी आँखों का भ्रम था।
काश तूने अपने अंदर झांका होता,
मुझे सिर्फ बाहर न तलाशा होता।
काश तूने धड़कन को सुना होता,
कसम से आज मैं पूरा तेरा होता।।
तब तो तेरे सामने मैं न था,
बस तेरी आँखों का भ्रम था।
नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान
बीकेटी, लखनऊ